Sunday, 3 December 2017

अध्याय-6 जैव प्रक्रम, 10th class ncert science chapter-6 part-1

अध्याय-6
जैव प्रक्रम, 10th class ncert science  

⦁जैव प्रक्रम-  जीवों में वे सभी प्रक्रम जो सम्मिलित रूप से अनुरक्षण का कार्य करते हैं , जैव प्रक्रम कहलाते है ।
⦁श्वसन-   शरीर के बाहर से ऑक्सीजन को ग्रहण करना तथा कोशिकीय आवश्यकतानुसार खाद्य स्रोत के विघटन में उसका उपयोग ' श्वसन' कहलाता है ।
⦁एक कोशिकीय जीव पर्यावरण के सीधे संपर्क में रहते है । अत: वे ऑक्सीजन की पूर्ति विसरण के द्वारा सरलतापूर्वक कर सकते है । जबकी बहुकोशिकीय जीवों में कोशिकाऐं सीधे पर्यावरण के संपर्क में नहीं रहती है अत: ऑक्सीजन की आवश्यकता पूरी करने में विसरण अपर्याप्त है ।

⦁उत्सर्जन - शरीर में मेटाबॉलिक (उपापचयी) प्रक्रियाओं के फलस्वरूप बने हानिकारक या अपशिष्ट उपोत्पादों को बाहर निकालने के प्रक्रम को उत्सर्जन कहते है ।

⦁स्वपोषी व विषमपोषी जीव-

स्वपोषी जीव- ऐसे जीव जो अपना भोजन स्वयं बनाते हैं , उन्हें स्वपोषी जीव कहते है । इनमें संचित भोजन स्टार्च होता है । उदाहरण- पौधे
विषमपोषी जीव- ऐसे जीव जो अपना भोजन स्वयं नहीं बनाते है और भोजन के लिए परोक्ष या प्रत्यक्ष रूप से स्वपोषियों पर निर्भर रहते है ,उन्हें विषमपोषी जीव कहते है । इनमें संचित भोजन या कार्बोहाइड्रेट ग्लाइकोजन होता है । उदाहरण- मानव, जूँ , अमरबेल

⦁पोषण-  वह प्रक्रिया जिसके अन्तर्गत पादपों के द्वारा बनाए गये भोज्य पदार्थ या जंतुओं के द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पादपों से ग्रहण किए गए भोज्य पदार्थ जो सजीवों की विभिन्न जैविक व शारीरिक क्रियाओं में सहायक होते है , पोषण कहलाती है ।

पोषण के प्रकार-
स्वपोषी पोषण- ऐसे पोषण जिसमें स्वपोषी जीव बाहर से लिए गए पदार्थों को ऊर्जा के रूप में संचित कर लेते है , स्वपोषी पोषण कहलाता है । उदाहरण- पौधे

विषमपोषी पोषण- ऐसा पोषण जिसमें जीव आहार या भोजन के लिए पादपों या अन्य जीव पर निर्भर रहते है ,उसे विषमपोषी पोषण या परपोषी पोषण कहते है । उदाहरण-मानव , जूँ आदि ।
⦁अमीबा एककोशिकीय जीव जो कूटपाद की सहायता से भोजन को ग्रहण करता है ।

⦁प्रकाश संश्लेषण-  पौधे में सजीव कोशिकाओं (क्लोरोप्लास्ट) के द्वारा प्रकाश ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में बदलना, प्रकाश संश्लेषण कहलाता है । प्रकाश संश्लेषण की क्रिया पौधे के हरे भागों जैसे पत्ति आदि में होती है ।
इसमें निम्न चरण होते है -
I. क्लोरोफिल (क्लोरोप्लास्ट) द्वारा प्रकाश ऊर्जा को अवशोषित करना ।
II. प्रकाश ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में रूपांतरित करना तथा जल अणुओं का हाइड्रोजन व ऑक्सीजन में अपघटन करना ।
III. कार्बनडाइऑक्साइड (CO2) का कार्बोहाइड्रेट में अपचयन करना ।
प्रकाश संश्लेषण की समीकरण-


⦁स्थलीय पौधे प्रकाश संश्लेषण के लिए जल की पूर्ति जड़ों द्वारा मिट्टी में उपस्थित जल के अवशोषण से करते है । इसी के साथ विभिन्न तत्व जैसे नाइट्रोजन , फॉस्फोरस , लोहा तथा मैग्निशियम भी किसी न किसी रूप में लिए जाते है ।
⦁रंध्र-  ये पत्ति की सतह पर उपस्थित होते है । प्रकाश संश्लेषण के लिए गैसों का अधिकांश आदान-प्रदान इन्हीं के द्वारा होता है । 
लेकिन गैसों का आदान-प्रदान तने, पत्ति व जड़ की सतह से भी होता है ।इन रंध्रों स पर्याप्त मात्रा में जल की हानि भी होती है ।जब प्रकाश संश्लेषण के लिए CO2 की आवश्यकता नहीं होती है तो पौधा इन रंध्रों को बंद कर लेता है । रंध्रों  का खुलना व बंद होना द्वार कोशिकाओं का कार्य है । द्वार कोशिकाऐं में जब जल अंदर प्रवेश करता है तो वे फूल जाती है और रंध्र का छिद्र खुल जाता है । इसी प्रकार जब द्वार कोशिकाऐं सिकुड़ती है तो छिद्र बंद हो जाता है ।


क्लोरोप्लास्ट(हरित लवक)-   हरे रंग के बिंदूवत्त कोशिकांग जिनमें क्लोरोफिल होता है उन्हें क्लोरोप्लास्ट कहते है । ये प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में सहायक होते है ।

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