Friday 15 December 2017

अध्याय-7 नियंत्रण एवं समन्वय,10th class ncert science chapter-7 part-2

तंत्रिका तंत्र-
                 जिस तंत्र के द्वारा विभिन्न अंगों का नियंत्रण और अंगों व वातावरण में सामंजस्य स्थापित होता है ,उसे तंत्रिका तंत्र कहते है । इससे प्रणी को वातावरण में होने वाले परिवर्तनों की जानकारी प्राप्त होती है । तंत्रिका कोशिका ,तंत्रिका तंत्र की संरचनात्मक व क्रियात्मक इकाई होती है । एककोशिकीय प्राणियों जैसे अमीबा आदि में तंत्रिका तंत्र नहीं पाया जाता है । बहुकोशिकीय प्राणियों जैसे हाइड्रा, तिलचट्टा, पक्षी, रेप्टाइल्स आदि में तंत्रिका तंत्र पाया जाता है । मनुष्य में सुविकसित तंत्रिका तंत्र पाया जाता है ।
इसे दो भागों में बाँटा गया है -
1. केन्द्रीय तंत्रिका तत्र(CNS = Central nervous system)   2. परिधीय तंत्रिका तंत्र(PNS = Peripheral nervous system )
1. केन्द्रीय तंत्रिका तत्र- यह शरीर की लम्बवत् रेखा पर  स्थित होता है । इसके अन्तर्गत मस्तिष्क व मेरूरज्जु आते है ।
2. परिधीय तंत्रिका तंत्र- इसके अन्तर्गत केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र से निकलने वाली व लौटने वाली तंत्रिकाऐं सम्मलित होती है । जो शरीर की परिधि में पायी जाती है । इसमें दो प्रकार के न्यूरॉन ,संवेदी न्यूरॉन/अभिवाही न्यूरॉन  (ये आवेगों को प्रभावी अंग से  CNS तक पहुँचाते है ।) व चालक न्यूरॉन/अपवाही न्यूरॉन (ये संकेतों को CNS से प्रभावी अंग तक पहुँचाते है ।) ,पाए जाते है ।
परिधीय तंत्रिका तंत्र को पुनः दो भागों में बाँटा जा सकता है -
I) कायिक तंत्रिका तंत्र(Somatic nervous system)- इसमें न्यूरॉन का वितरण कंकालीय पेशीयों को होता है ।
II)स्वायत्त तंत्रिका तंत्र(Autonomous nervous system = ANS)- इसमें न्यूरॉन का वितरण चिकनी पेशियों और आंतरांगों तक होता है । इस तंत्र को दो भागों में बाँटा गया है -
i) अनुकंपी तंत्रिका तंत्र(Sympethetic nervous system)- यह ह्रदय स्पंदन दर व रक्त दाब को बढ़ाता है ।
 ii) परानुकंपी तंत्रिका तंत्र(Parasympethetic nervous system)- यह ह्रदय स्पंदन दर व रक्त दाब को कम करता  है ।

जंतुओं की अंतः स्त्रावी ग्रथियाँ व उनसे स्त्रावित होने वाले हार्मोन-

I. पीयूष ग्रंथि- इसे मास्टर ग्रंथि भी कहते है । इसका आकार मटर के दाने के समान होता है । इससे स्त्रावित वृद्धि हार्मोन ,शारीरिक वृद्धि के लिए आवश्यक होता है ।
II. पीनियल ग्रंथि -  इससे मिलेटॉनिन हार्मोन स्त्रावित होता है । यह ताप नियमन , त्वचा के रंग को हल्का करना आदि में सहायक होता है ।
III. हाइपोथैलेमस -  इससे मुक्ति कारक, संदमक कारक , सोमेटोस्टेटिन व हार्मोन्स(ADH व ऑक्सीटोसिन) आदि स्त्रावित होते है । यह ताप नियमन करता है ।
IV. थायरॉइड(अवटु) ग्रंथि - इससे थायरॉक्सिन हार्मोन स्त्रावित होता है ।इस हार्मोन के निर्माण के आयोडीन की आवश्यकता होती है । यह हार्मोन कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन व वसा आदि के उपापचय का नियंत्रण करता है ।

आहार में आयोडीन की कमी होने से हम घेंघा या गॉयटर से ग्रसित हो सकते है, जिसमें गर्दन फूल जाती है ।

यदि बाल्यावस्था में थायरॉक्सीन हार्मोन की कमी हो जाये तो बोनापन हो सकता है जिसे क्रेटेनिज्म कहते है ।

V. पैराथायरॉइड ग्रंथि - इससे PTH या पैराथारमोन या कोलिप्स हार्मोन स्त्रावित होता है । यह रक्त में Ca++ के स्तर को बढ़ाता है ,अतः इसे हाइपरकैल्सिमिक हार्मोन भी कहते है ।
VI. थाइमस ग्रंथि -  इससे थाइमोसिन हार्मोन स्त्रावित होता है । यह लिम्फोसाइट्स के परिपक्वन में सहायक होता है ।
VII. एड्रीनल ग्रंथि(अधिवृक्क ग्रंथि) -  इससे एड्रीनलीन(एपिनेफ्रिन) हार्मोन स्त्रावित होता है । इसके कारण ह्रदय की धड़कन बढ़ जाती है ताकि हमारी पेशियों को ऑक्सीजन की आपूर्ति अधिक हो सके । इस हार्मोन को "करो या मरो" हार्मोन या "फ्लाइट हार्मोन" भी कहते है ।
VIII. अग्नाशय - इसमें उपस्थित "लैंगरहैंस के द्वीप" समूह इंसुलिन व ग्लूकेगॉन हार्मोन स्त्रावित करते है । इंसुलिन रक्त में ग्लूकोज(शर्करा) के स्तर को कम कर करता है जबकि ग्लूकेगॉन ग्लूकोज के स्तर को रक्त में बढ़ाता है ।
IX. वृषण - ये नर में प्राथमिक लैंगिक अंग है । इससे लैंगिक हार्मोन टेस्टोस्टेरॉन हार्मोन स्त्रावित होता है , यह द्वितीयक लैंगिक लक्षणों को प्रकट करता है ।
X. अण्डाशय -  ये मादा में प्राथमिक लैंगिक अंग है । इससे लैंगिक हार्मोन एस्ट्रोजन स्त्रावित होता है । यह द्वितीयक लैंगिक लक्षणों को प्रकट करता है ।

पादप हार्मोन- पादप हार्मोनपादपों में वृद्धि, विकास तथा पर्यावरण के प्रति अनुक्रिया के समन्वय में सहायता करते है । ये हार्मोन क्रिया क्षेत्र तक साधारण विसरण विधि द्वारा पहुँच जाते है । पादप हार्मोन को दो भागों में बाँटा गया है -

1. पादप वृद्धि प्रेरित हार्मोन- ये सामान्यतः पादप की वृद्धि से संबंधित होते है । इसके अन्तर्गत निम्न हार्मोन आते है -
I) ऑक्सीन- इसका संश्लेषण तने व जड़ के अग्रस्थ (टीप) भाग पर होता है । यह तने व जड़ की लंबाई में वृद्धि करता है ।
II) जिब्बेरेलिन- यह भी तने की लंबाई में वृद्धि करता है ।
III) साइटोकाइनिन- यह कोशिका विभाजन को प्रेरित करता है अतः यह उन क्षेत्रों में अधिक सांद्रता में पाया जाता है । जहाँ कोशिका विभाजन तीव्र होता है ।
2. पादप वृद्धि संदमक हार्मोन - यह हार्मोन पादप वृद्धि को संदमित करते है । इसमें निम्न हार्मोन आते है -
I) एब्सिसिक अम्ल- इसके कारण पत्तियों का विलगित व मुरझा जाती है । यह बीज आदि की प्रसुप्ति (डोरमेंसी) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है ।
पादपों में समन्वय-
                            पादप भी विभिन्न प्रकार से समन्वय प्रदर्शित करते है ।
   1. उद्दीपनों के प्रति अनुक्रिया-
                                       पादप भी उद्दीपनों के प्रति अनुक्रिया दर्शाते है ,जैसे छुई-मुई का पादप । अगर इस पादप को कोई छूता है तो यह अपनी पत्तियों को मोड़ लेता है और उद्दीपन के प्रति अनुक्रिया दर्शाता है । इसी कारण इस पादप को touch me not पादप भी कहते है ।
इस अनुक्रिया में विभिन्न प्रकार के वैद्युत रसायन सहायक होते है । लेकिन पादपों में सूचनाओं के संचरण के लिए जन्तुओं के समान विशिष्टीकृत उत्तक नहीं पाए जाते है ।
2. वृद्धि के कारण गति-
                              इसे मुख्यतः निम्न प्रकार से समझ सकते है ।
i) प्रकाशानुवर्तन गति -
                               अधिकांशतः पादपों में तना वाला भाग प्रकाश की दिशा में गति करता है ,इसे ही प्रकाशानुवर्तन गति कहते है । इसे तने की धनात्मक प्रकाशानुवर्तन गति भी कहते है ।
जबकी जड़े प्रकाश की विपरित दिशा में गति करती है अतः इसे ऋणात्मक प्रकाशानुवर्तन गति कहते है ।
ii) गुरूत्वानुवर्तन गति -
                                अधिकांशतः पादपों में जड़े गुरूत्वानुकर्षण बल की ओर गति करती है , इसे ही गुरूत्वानुवर्तन गति कहते है । इसे जड़ की धनात्मक गुरूत्वानुवर्तन गति भी कहते है ।
जबकी तना गुरूत्वानुकर्षण बल के विपरित दिशा में गति करता है इसी कारण इसे ऋणात्मक गुरूत्वानुवर्तन गति कहते है ।

इसी प्रकार पादपों में रसायनानुवर्तन गति(पादप भाग की रसायनों के प्रति गति) , जलानुवर्तन गति (पादप भाग की जल के प्रति गति) आदि पाई जाती है ।

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